Sep 23, 2010

"इंसान से ही उसकी पहचान हैं."

सिर्फ एक फैसले ने थाम दी इन दिनों साँसे सभी की,
उस घर का मालिक तेरा खुदा हैं या मेरा भगवान हैं?
डरती हैं हर माँ जब बेटा निकलता हैं बाहर घर से,
कहीं खो न दे उस लखते-जिगर को जो उसकी जान हैं.
किस तरह से सिकती हैं राजनीति की रोटियां नाम से उसके ,
इस बात पर होता खुद उपरवला भी आज कल बड़ा हैरान हैं.
बहुत आराम से बैठे हैं ये सियासत करने वाले घर में,
अगर हैं कोई मुश्किल में तो बाहर सड़क का आम इंसान हैं.
सोचता हूँ इन -दिनों देख किसी को डरा और सहमा हुआ सा,
कहा चुप गया जाकर कोने में अपना वो आसमानी निगहबान हैं?
हो सके तो माफ़ करना इस बात के लिए मुझको खुदा मेरे,
सवाल हैं मेरा क्या सच में होता तू कोई भगवान हैं.
मिलती है खुशी अगर उसको रुलाकर अपने इन बच्चों को,
न है वो खुदा तेरा और न हो सकता वो मेरा भगवान हैं.
हो सके तो न पूछना इस एक सवाल को फिर कभी किसी और से,
हिन्दू हैं कोई मेरे देश का या फिर तू उस देश का मुसलमान हैं.
क्या गलत हैं गर रहे तेरा खुदा सामने मेरे भगवान के ?
जब इस तरीके से मुमकिन भारत की उन्नति और बढती शान हैं.
सुना दो सबको मजहब से कहीं ज्यादा बड़ी होती इंसानियत मंगल ?
मुमकिन नहीं खुदा इंसान के बिना जब इंसान से ही उसकी पहचान हैं.

Sep 12, 2010

ग़ज़ल तन्हाई को सुनाने चला हूँ......

पत्थर को दिल का हाल सुनाने चला हूँ,
अपनी रूठी हुई किस्मत को मनाने चला हूँ.
अपनी नाकाम हसरतों का जनाजा उठाये हुए,
मैं आज भी उनसे खुद ही वफ़ा निभाने चला हूँ.
वो बेवफा न थे मैं बदनसीब था शायद,
यही एक राज़ इस ज़माने को बताने चला हूँ.
ओ सावन की घटाओं कल आकर उमड़ना,
आज तो मैं खुद के आंसू बहाने चला हूँ.
जहाँ बनाये थे मैंने आशियाने कभी दिल के अपने,
आज हर एक उसी साख को जड़ से जलाने चला हूँ.
कहीं तेरी शायरी किसी का दिल न दुखा दे मंगल,
इसलिए अपनी ग़ज़ल तन्हाई को सुनाने चला हूँ......

तुम..

दोस्ती के पन्नो पर लिखी जो खुद खुदा ने,
वो एक बहुत ही दिलचस्प सी किताब हो तुम.
वैसे तो हैं कई रंग के फूल हैं इस दुनिया में,
रिश्तों के फूल पर जैसे एक खिलता गुलाब हो तुम.
कुछ लोग कहते हें के दोस्त अच्छे नही होते मंगल,
उन लोगों के हर सवाल पर मेरा बस एक जवाब हो तुम...

हर नज़र से...

वो लिपटे हैं गले आकर मेरे उस कड़कती बिजली के डर से,
ला इलाही मेरे ये बारिश अब कम से कम दो दिन तो बरसे.
उफ़ तेरी आरजू-ऐ-फरेब में न आ जाऊ कहीं सनम मेरे,
न देखो तुम मुझे मोह्हबत से अपनी इस नशीली नज़र से.
बहुत दिनों में कोई आ रहा हैं आज घर पर मेरे मुश्किल से,
अगर हो सके मेरे खुदा तो आज बस आसमान से नूर ही बरसे.
सिर्फ सुनेगा मेरे शेर और तेरे ऊपर लिखी मेरी ग़ज़ल-नगमो को ,
एक बार अगर देख ले तुझे कोई इस जहाँ में मेरी वाली नज़र से.
जितना भी जाना है जाना है उनको बहुत ही थोडा सा तुमने मंगल,
हर दफा आते हैं वो नज़र अलग से जाने क्यों मुझको अपनी हर नज़र से....

"साँसों की माला"

साँसों की माला पर लिखा हैं,
मैंने तो अपने पिया का नाम.
मेरे मन की तो बस जानू मैं,
पिया के मन की जाने मेरा राम.
इस प्रेम के रंग में ऐसी डूबी,
जैसे डूबे अन्धकार में कोई शाम ,
अब ये प्रेम करना ही काम मेरा,
करती हूँ इसे रोज़ सुबह से शाम.
पिया को कैसे दोष दूँ अनजाने में भी,
जब वो तो हैं बिलकुल ही निष्काम.
तुमने कभी कुछ कहा नहीं पिया मंगल,
खुद से ही बातें कर मैं हो गयी बदनाम...

Jul 26, 2010

अभी न जाओ छोड़कर,

अभी न जाओ छोड़कर,
तुम्हे मेरी हैं कसम.
तुम ही तो हो दिलबर मेरे,
तुम ही तो हो मेरे सनम.
तुम रहते हो खफा-खफा,
हैं ये सजा किस बात की?
आओ सनम लग जाओ गले,
ये रात हैं पहली मुलाकात की.
एक बार तो कह दो जरा ,
मैं कौन हूँ तेरे लिए?
बंदगी तो मैं करता नहीं,
हैं खुदा तू अब मेरे लिए.
एक आप है और एक इश्क ये,
दोनों ने ही मुझे गम दिए.
बस है तो ख़ुशी इस बात की मंगल,
की जितने दिए बड़े कम दिए.....

Jul 20, 2010

सादगी श्रंगार हो गयी

तेरी सादगी श्रंगार हो गयी,
तब से आइनों की हार हो गयी.
तुमने हम को मोल क्या लिया,
अपनी जिंदगी भी उधार हो गयी.
देख तुझको महका महका सा,
अपनी साँसे आज बेकरार हो गयी.
देख कर तुझको हँसता ऐ हसीन,
दिल से चाहते भी बाहर हो गयी.
करते हो प्यार तुम भी जब मुझे,
फिर आज क्यूँ समझदार हो गयी.
अपना काम हैं चाहना उन्हें मंगल,
तो अपनी जिंदगी क्यूँ दुश्वार हो गयी...